शीशा

मेरा वज़ूद जैसे मिटता जाता है,
खैर, तुम्हारा इससे क्या जाता है।
आदमी जन्म लेके जमीं पे आता है लेकिन,
आदमी मरकर भला कहाँ जाता है।
सब कहने की बातें हैं की बिछुड़ कर न रह पाएंगे,
थोड़ा मुश्किल है दोस्त, मगर रहा जाता है।
बेइंसाफी सी है, लेकिन दिल तोड़ने वाला,
टूटे दिल से भी निकल कहाँ जाता है।
जीना ही है तो जिओ उस आदमी की तरह,
बीता कल सुनहरी जिल्द में जिसका लिखा जाता है।
हमारे दर्द पे तुम भी कहीं न रो पड़ो “सागर”
कि शीशा पत्थर पे गिर कर अक्सर टूट जाता है।

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