खिलाडी

मज़बूरियां निगल जाती है मासूमियत साहेब,
वर्ना किस बच्चे को खिलोने अच्छे नहीं लगते |

सीखे होते हैं वक़्त के थपेड़ों से वोह शायद,
जो बच्चे होते हैं, मगर बच्चे नहीं लगते |

तुम्हे कोई कैसे, दे-दे सबूते-वफ़ा अपना,
तुम्हे झूठे, झूठे नहीं लगते, सच्चे सच्चे नहीं लगते |

मेरा ना होना हैं अच्छा, तुम्हारे होने के बास्ते,
अगर गिर जाएं कीचड़ में, हीरे अच्छे नहीं लगते |

इश्क़ का हश्र कुछ भी हो, मुझे खुद पे यकीन हैं और,
दूसरा ये के खिलाडी तुम भी कच्चे नहीं लगते |

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