सब के सब,

उसने मेरे खुआब चुराए सब के सब,
मैंने मेरे ज़ख़्म छुपाये सब के सब |
मेरा ही एक जन्मदिन न याद रहा,
तूने उसके दिन मनाये सब के सब |
दिन क्या फिरे है मेरे, मेरी ग़ुरबत से,
छोड़ने वाले लोट के आये सब के सब |
जब से गए हो तुम उजाला खलता है,
मैंने अपने दिये बुझाये सब के सब |
उसकी कैद से रिहा हुआ तो समझा मैं,
कितने मुश्किल साल बिताये सब के सब |
कुछ न कुछ तो तुमसे मिलता जुलता है,
मैंने जितने अक्स बनाये सब के सब,
रिश्ते, मुहब्बत, अपनापन और मैं,
हाँ, तूने मेरे भरम मिटाये सब के सब |

Leave a comment